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१ पस मैं सबसे पहले ये नसीहत करता हूँ,कि मुनाजातें, और दू'आएँ और, इल्तिजायें और शुक्र्गुज़ारियाँ सब आदमियों के लिए की जाएँ, २ बादशाहों और सब बड़े मरतबे वालों के वास्ते इसलिए कि हम कमाल दीनदारी और सन्जीदगी से चैन सुकून के साथ ज़िन्दगी गुजारें| ३ ये हमारे मुन्जी ख़ुदा के नज़दीक 'उम्दा और पसन्दीदा है। ४ वो चाहता है कि सब आदमी नजात पाएँ, और सच्चाई की पहचान तक पहुंचें। ५ क्यूँकि ख़ुदा एक है,और ख़ुदा और इन्सान के बीच में दर्मियानी भी एक या'नी मसीह ईसा' जो इन्सान है| ६ जिसने अपने आपको सबके फ़िदिये में दिया कि मुनासिब वक़्तों पर इसकी गवाही दी जाए| ७ मैं सच कहता हूँ, झूट नहीं बोलता,कि मैं इसी ग़रज़ से ऐलान करने वाला और रसूल और ग़ैर-क़ौमों को ईमान और सच्चाई की बातें सिखाने वाला मुक़र्रर हुआ| ८ पस मैं चाहता हूँ कि मर्द हर जगह, बग़ैर ग़ुस्सा और तकरार के पाक हाथों को उठा कर दु'आ किया करें। ९ इसी तरह 'औरतें हयादार लिबास से शर्म और परहेज़गारी के साथ अपने आपको सँवारें; न कि बाल गूँधने, और सोने और मोतियों और क़ीमती पोशाक से, १० बल्कि नेक कामों से,जैसा ख़ुदा परस्ती का इक़रार करने वाली'औरतों को मुनासिब है। ११ 'औरत को चुपचाप कमाल ताबेदारी से सीखना चाहिये। १२ और मैं इजाज़त नहीं देता कि'औरत सिखाए या मर्द पर हुक्म चलाए,बल्किचुपचाप रहे। १३ क्यूँकिपहले आदम बनाया गया,उसके बा'द हव्वा; १४ और आदम ने धोखा नहीं खाया,बल्कि'औरत धोखा खाकर गुनाह में पड़ गई; १५ लेकिन औलाद होने से नजात पाएगी,बशर्ते कि वो ईमान और मुहब्बत और पाकीज़गी में परहेज़गारी के साथ क़ायम रहें।