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1 ऐ ख़ुदावन्द! मुझे बुरे आदमी से रिहाई बख़्श;
मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख।
2 जो दिल में शरारत के मन्सूबे बाँधते हैं;
वह हमेशा मिलकर जंग के लिए जमा' हो जाते हैं।
3 उन्होंने अपनी ज़बान साँप की तरह तेज़ कर रखी है।
उनके होटों के नीचे अज़दहा का ज़हर है।
4 ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शरीर के हाथ से बचा मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख,
जिनका इरादा है कि मेरे पाँव उखाड़ दें।
5 मग़रूरों ने मेरे लिए फंदे और रस्सियों को छिपाया है,
उन्होंने राह के किनारे जाल लगाया है;
उन्होंने मेरे लिए दाम बिछा रख्खे हैं। सिलाह
6 मैंने ख़ुदावन्द से कहा,
मेरा ख़ुदा तू ही है। ऐ ख़ुदावन्द,
मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर कान लगा।
7 ऐ ख़ुदावन्द मेरे मालिक, ऐ मेरी नजात की ताक़त,
तूने जंग के दिन मेरे सिर पर साया किया है।
8 ऐ ख़ुदावन्द, शरीर की मुराद पूरी न कर,
उसके बुरे मन्सूबे को अंजाम न दे ताकि वह डींग न मारे। सिलाह
9 मुझे घेरने वालों की मुँह के शरारत,
उन्हीं के सिर पर पड़े।
10 उन पर अंगारे गिरें! वह आग में डाले जाएँ!
और ऐसे गढ़ों में कि फिर न उठे।
11 बदज़बान आदमी की ज़मीन पर क़याम न होगा।
आफ़त टेढ़े आदमी को दौड़ा कर हलाक करेगी।
12 मैं जानता हूँ कि ख़ुदावन्द मुसीब तज़दा के मु'आमिले की,
और मोहताज के हक़ की ताईद करेगा।
13 यक़ीनन सादिक़ तेरे नाम का शुक्र करेंगे,
और रास्तबाज़ तेरे सामने में रहेंगे।