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1 मेरी जान को ख़ुदा ही की उम्मीद है,
मेरी नजात उसी से है।
2 वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है,
वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे ज़्यादा जुम्बिश न होगी।
3 तुम कब तक ऐसे शख़्स पर हमला करते रहोगे,
जो झुकी हुई दीवार और हिलती बाड़ की तरह है;
ताकि सब मिलकर उसे क़त्ल करो?
4 वह उसको उसके मर्तबे से गिरा देने ही का मश्वरा करते रहते हैं;
वह झूट से ख़ुश होते हैं।
वह अपने मुँह से तो बरकत देते हैं लेकिन दिल में ला'नत करते हैं।
5 ऐ मेरी जान, ख़ुदा ही की आस रख,
क्यूँकि उसी से मुझे उम्मीद है।
6 वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है;
वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे जुम्बिश न होगी।
7 मेरी नजात और मेरी शौकत ख़ुदा की तरफ़ से है;
ख़ुदा ही मेरी ताक़त की चट्टान और मेरी पनाह है।
8 ऐ लोगो। हर वक़्त उस पर भरोसा करो;
अपने दिल का हाल उसके सामने खोल दो।
ख़ुदा हमारी पनाहगाह है। सिलाह
9 यक़ीनन अदना लोग बेसबात हैं
और आला आदमी झूटे; वह तराजू़ में हल्के निकलेंगे;
वह सब के सब बेसबाती से भी कमज़ोर हैं
10 जु़ल्म पर तकिया न करो,
लूटमार करने पर न फूलो;
अगर माल बढ़ जाए तो उस पर दिल न लगाओ।
11 ख़ुदा ने एक बार फ़रमाया;
मैंने यह दो बार सुना,
कि कु़दरत ख़ुदा ही की है।
12 शफ़क़त भी ऐ ख़ुदावन्द तेरी ही है;
क्यूँकि तू हर शख़्स को उसके 'अमल के मुताबिक़ बदला देता है।