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1 मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई,
और जिसका गुनाह ढाँका गया।
2 मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता,
और जिसके दिल में दिखावा नहीं।
3 जब मैं ख़ामोश रहा
तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई।
4 क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था;
मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। सिलाह
5 मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया,
मैंने कहा, मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा
और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। सिलाह
6 इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दुआ करे जब तू मिल सकता है।
यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा।
7 तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा;
तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा। सिलाह
8 मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा;
मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी।
9 तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं,
जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है,
वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं।
10 शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी;
पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है,
रहमत उसे घेरे रहेगी।
11 ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश — ओ — बुर्रम रहो;
और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो!