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1 तब इलीशा बोला, “रब का फ़रमान सुनें! रब फ़रमाता है कि कल इसी वक़्त शहर के दरवाज़े पर साढ़े 5 किलोग्राम बेहतरीन मैदा और 11 किलोग्राम जौ चाँदी के एक सिक्के के लिए बिकेगा।” 2 जिस अफ़सर के बाज़ू का सहारा बादशाह लेता था वह मर्दे-ख़ुदा की बात सुनकर बोल उठा, “यह नामुमकिन है, ख़ाह रब आसमान के दरीचे क्यों न खोल दे।” इलीशा ने जवाब दिया, “आप अपनी आँखों से इसका मुशाहदा करेंगे, लेकिन ख़ुद उसमें से कुछ न खाएँगे।”
शाम के फ़ौजी फ़रार हो जाते हैं
3 शहर से बाहर दरवाज़े के क़रीब कोढ़ के चार मरीज़ बैठे थे। अब यह आदमी एक दूसरे से कहने लगे, “हम यहाँ बैठकर मौत का इंतज़ार क्यों करें? 4 शहर में काल है। अगर उसमें जाएँ तो भूके मर जाएंगे, लेकिन यहाँ रहने से भी कोई फ़रक़ नहीं पड़ता। तो क्यों न हम शाम की लशकरगाह में जाकर अपने आपको उनके हवाले करें। अगर वह हमें ज़िंदा रहने दें तो अच्छा रहेगा, और अगर वह हमें क़त्ल भी कर दें तो कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। यहाँ रहकर भी हमें मरना ही है।”
5 शाम के धुँधलके में वह रवाना हुए। लेकिन जब लशकरगाह के किनारे तक पहुँचे तो एक भी आदमी नज़र न आया। 6 क्योंकि रब ने शाम के फ़ौजियों को रथों, घोड़ों और एक बड़ी फ़ौज का शोर सुना दिया था। वह एक दूसरे से कहने लगे, “इसराईल के बादशाह ने हित्ती और मिसरी बादशाहों को उजरत पर बुलाया ताकि वह हम पर हमला करें!” 7 डर के मारे वह शाम के धुँधलके में फ़रार हो गए थे। उनके ख़ैमे, घोड़े, गधे बल्कि पूरी लशकरगाह पीछे रह गई थी जबकि वह अपनी जान बचाने के लिए भाग गए थे।
8 जब कोढ़ी लशकरगाह में दाख़िल हुए तो उन्होंने एक ख़ैमे में जाकर जी भरकर खाना खाया और मै पी। फिर उन्होंने सोना, चाँदी और कपड़े उठाकर कहीं छुपा दिए। वह वापस आकर किसी और ख़ैमे में गए और उसका सामान जमा करके उसे भी छुपा दिया। 9 लेकिन फिर वह आपस में कहने लगे, “जो कुछ हम कर रहे हैं ठीक नहीं। आज ख़ुशी का दिन है, और हम यह ख़ुशख़बरी दूसरों तक नहीं पहुँचा रहे। अगर हम सुबह तक इंतज़ार करें तो क़ुसूरवार ठहरेंगे। आएँ, हम फ़ौरन वापस जाकर बादशाह के घराने को इत्तला दें।”
10 चुनाँचे वह शहर के दरवाज़े के पास गए और पहरेदारों को आवाज़ देकर उन्हें सब कुछ सुनाया, “हम शाम की लशकरगाह में गए तो वहाँ न कोई दिखाई दिया, न किसी की आवाज़ सुनाई दी। घोड़े और गधे बँधे हुए थे और ख़ैमे तरतीब से खड़े थे, लेकिन आदमी एक भी मौजूद नहीं था!”
11 दरवाज़े के पहरेदारों ने आवाज़ देकर दूसरों को ख़बर पहुँचाई तो शहर के अंदर बादशाह के घराने को इत्तला दी गई। 12 गो रात का वक़्त था तो भी बादशाह ने उठकर अपने अफ़सरों को बुलाया और कहा, “मैं आपको बताता हूँ कि शाम के फ़ौजी क्या कर रहे हैं। वह तो ख़ूब जानते हैं कि हम भूके मर रहे हैं। अब वह अपनी लशकरगाह को छोड़कर खुले मैदान में छुप गए हैं, क्योंकि वह समझते हैं कि इसराईली ख़ाली लशकरगाह को देखकर शहर से ज़रूर निकलेंगे और फिर हम उन्हें ज़िंदा पकड़कर शहर में दाख़िल हो जाएंगे।”
13 लेकिन एक अफ़सर ने मशवरा दिया, “बेहतर है कि हम चंद एक आदमियों को पाँच बचे हुए घोड़ों के साथ लशकरगाह में भेजें। अगर वह पकड़े जाएँ तो कोई बात नहीं। क्योंकि अगर वह यहाँ रहें तो फिर भी उन्हें हमारे साथ मरना ही है।”
14 चुनाँचे दो रथों को घोड़ों समेत तैयार किया गया, और बादशाह ने उन्हें शाम की लशकरगाह में भेज दिया। रथबानों को उसने हुक्म दिया, “जाएँ और पता करें कि क्या हुआ है।” 15 वह रवाना हुए और शाम के फ़ौजियों के पीछे पीछे चलने लगे। रास्ते में हर तरफ़ कपड़े और सामान बिखरा पड़ा था, क्योंकि फ़ौजियों ने भागते भागते सब कुछ फेंककर रास्ते में छोड़ दिया था। इसराईली रथसवार दरियाए-यरदन तक पहुँचे और फिर बादशाह के पास वापस आकर सब कुछ कह सुनाया।
16 तब सामरिया के बाशिंदे शहर से निकल आए और शाम की लशकरगाह में जाकर सब कुछ लूट लिया। यों वह कुछ पूरा हुआ जो रब ने फ़रमाया था कि साढ़े 5 किलोग्राम बेहतरीन मैदा और 11 किलोग्राम जौ चाँदी के एक सिक्के के लिए बिकेगा।
17 जिस अफ़सर के बाज़ू का सहारा बादशाह लेता था उसे उसने दरवाज़े की निगरानी करने के लिए भेज दिया था। लेकिन जब लोग बाहर निकले तो अफ़सर उनकी ज़द में आकर उनके पैरों तले कुचला गया। यों वैसा ही हुआ जैसा मर्दे-ख़ुदा ने उस वक़्त कहा था जब बादशाह उसके घर आया था। 18 क्योंकि इलीशा ने बादशाह को बताया था, “कल इसी वक़्त शहर के दरवाज़े पर साढ़े 5 किलोग्राम बेहतरीन मैदा और 11 किलोग्राम जौ चाँदी के एक सिक्के के लिए बिकेगा।” 19 अफ़सर ने एतराज़ किया था, “यह नामुमकिन है, ख़ाह रब आसमान के दरीचे क्यों न खोल दे।” और मर्दे-ख़ुदा ने जवाब दिया था, “आप अपनी आँखों से इसका मुशाहदा करेंगे, लेकिन ख़ुद उसमें से कुछ नहीं खाएँगे।”
20 अब यह पेशगोई पूरी हुई, क्योंकि बेकाबू लोगों ने उसे शहर के दरवाज़े पर पाँवों तले कुचल दिया, और वह मर गया।