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यहूदा के लोगों के पाप 
 1 यहोवा कहता है, “यरूशलेम की सड़कों पर ऊपर नीचे जाओ। चारों ओर देखो और इन चीजों के बारे में सोचो। नगर के सार्वजनिक चौराहो को खोजो, पता करो कि क्या तुम किसी एक अच्छे व्यक्ति को पा सकते हो, ऐसे व्यक्ति को जो ईमानदारी से काम करता हो, ऐसा जो सत्य की खोज करता हो। यदि तुम एक अच्छे व्यक्ति को ढूँढ निकालोगे तो मैं यरूशलेम को क्षमा कर दूँगा!  2 लोग प्रतिज्ञा करते हैं और कहते हैं, ‘जैसा कि यहोवा शाश्वत है।’ किन्तु वे सच्चाई से यही तात्पर्य नहीं रखते।” 
 3 हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि तू लोगों में सच्चाई देखना चाहता है। 
तूने यहूदा के लोगों को चोट पहुँचाई, किन्तु उन्होंने किसी पीड़ा का अनुभव नहीं किया। 
तूने उन्हें नष्ट किया, किन्तु उन्होंने अपना सबक सीखने से इन्करा कर दिया। 
वे बहुत हठी हो गए। 
उन्होंने अपने पापों के लिये पछताने से इन्कार कर दिया। 
 4 किन्तु मैं (यिर्मयाह) ने अपने से कहा, 
“वे केवल गरीब लोग ही है जो उतने मूर्ख हैं। 
ये वही लोग हैं जो यहोवा के मार्ग को नहीं सीख सके! 
गरीब लोग अपने परमेश्वर की शिक्षा को नहीं जानते। 
 5 इसलिये मैं यहूदा के लोगों के प्रमुखों के पास जाऊँगा। 
मैं उनसे बातें करूँगा। 
निश्चय ही प्रमुख यहोवा के मार्ग को समझते हैं। 
मुझे विश्वास है कि वे अपने परमेश्वर के नियमों को जानते हैं।” 
किन्तु सभी प्रमुख यहोवा की सेवा करने से इन्कार करने में एक साथ हो गए। 
 6 वे परमेश्वर के विरुद्ध हुए, अत: जंगल का एक सिंह उन पर आक्रमण करेगा। 
मरुभूमि में एक भेड़िया उन्हें मार डालेगा। 
एक तेंदुआ उनके नगरों के पास घात लगाये है। 
नगरों के बाहर जाने वाले किसी को भी तेंदुआ टुकड़ों में चीर डालेगा। 
यह होगा, क्यैं कि यहूदा के लोगों ने बार—बार पाप किये हैं। 
वे कई बार यहोवा से दूर भटक गए हैं। 
 7 परमेश्वर ने कहा, “यहूदा, मुझे कारण बताओ कि मुझे तुमको क्षमा क्यों कर देना चाहिये तुम्हारी सन्तानों ने मुछे त्याग दिया है। 
उन्होंने उन देवमूर्तियों से प्रतिज्ञा की है जो परमेश्वर हैं ही नहीं। 
मैंने तुम्हारी सन्तानों को हर एक चीज़ दी जिसकी जरुरत उन्हें थी। 
किन्तु फिर भी वे विश्वासघाती रहे! 
उन्होंने वेश्यालयों में बहुत समय बिताया। 
 8 वे उन घोड़ों जैसे रहे जिन्हें बहुत खाने को है, और जो जोड़ा बनाने को हो। 
वे उन घोड़ों जैसे रहे जो पड़ोसी कीर् पॅत्नयों पर हिन हिना रहे हैं। 
 9 क्या मुझे यहूदा के लोगों को ये काम करने के कारण, दण्ड देना चाहिए यह सन्देश यहोवा का है। 
हाँ! तुम जानते हो कि मुझे इस प्रकार के राष्ट्र को दण्ड देना चाहिये। 
मुझे उन्हें वह दण्ड देना चाहिए जिसके वे पात्र हैं। 
 10 यहूदा की अंगूर की बेलों की कतारों के सहारे से निकलो। 
बेलों को काट डालो। (किन्तु उन्हें पूरी तरह नष्ट न करो।) 
उनकी सारी शाखायें छाँट दो क्योंकि ये शाखाये यहोवा की नहीं हैं। 
 11 इस्राएल और यहूदा के परिवार हर प्रकार से मेरे विश्वासघाती रहे हैं।” 
यह सन्देश यहोवा के यहाँ से है। 
 12 “उन लोगों ने यहोवा के बारे में झूठ कहा है। 
उन्होंने कहा है, ‘यहोवा हमारा कुछ नहीं करेगा। 
हम लोगों का कुछ भी बुरा न होगा। 
हम किसी सेना का आक्रमण अपने ऊपर नहीं देखेंगे। 
हम कभी भूखों नहीं मरेंगे।’ 
 13 झूठे नबी मरे प्राण हैं। 
परमेश्वर का सन्देश उनमें नहीं उतरा है। 
विपत्तियाँ उन पर आयेंगी।” 
 14 सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा ने यह सब कहा, “उन लोगों ने कहा कि मैं उन्हें दण्ड नहीं दूँगा। 
अत: यिर्मयाह, जो सन्देश मैं तुझे दे रहा हूँ, वह आग जैसा होगा और वे लोग लकड़ी जैसे होंगे। 
आग सारी लकड़ी जला डालेगी।” 
 15 इस्राएल के परिवार, यह सन्देश यहोवा का है, “तुम पर आक्रमण के लिये मैं एक राष्ट्र को बहुत दूर से जल्दी ही लाऊँगा। 
यह एक पुराना राष्ट्र है। 
यह एक प्राचीन राष्ट्र है। 
उस राष्ट्र के लोग वह भाषा बोलते हैं जिसे तुम नहीं समझते। 
तुम नहीं समझ सकते कि वे क्या कहते हैं 
 16 उनके तरकश खुली कब्र हैं, उनके सभी लोग वीर सैनिक हैं। 
 17 वे सैनिक तुम्हारी घर लाई फसल को खा जाएंगे। 
वे तुम्हारा सारा भोजन खा जाएंगे। 
वे तुम्हारे पुत्र—पुत्रियों को खा जाएंगे (नष्ट कर देंगे) वे तुम्हारे रेवड़ और पशु झुण्ड को चट कर जाएंगे। 
वे तुम्हारे अंगूर और अंजीर को चाट जाएंगे। 
वे तुम्हारे दृढ़ नगरों को अपनी तलवारों से नष्ट कर डालेंगे। 
जिन नगरों पर तुम्हारा विश्वास है उन्हें वे नष्ट कर देंगे।” 
 18 यह सन्देश यहोवा का है: 
“किन्तु कब वे भयैंनक दिन आते हैं, 
यहूदा मैं तुझे पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा। 
 19 यहूदा के लोग तुमसे पूछेंगे, 
‘यिर्मयाह, हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारा ऐसा बुरा क्यों किया?’ 
उन्हें यह उत्तर दो, 
‘यहूदा के लोगों, तुमने यहोवा को त्याग दिया है, 
और तुमने अपने ही देश में विदेशी देव मूर्तियों की पूजा की है। 
तुमने वे काम किये, 
अत: तुम अब उस देश में जो तुम्हारा नहीं है, विदेशियों की सेवा करोगे।’ 
 20 यहोवा ने कहा, “याकूब के परिवार में, इस सन्देश की घोषणा करो। 
इस सन्देश को यहूदा राष्ट्र में सुनाओ। 
 21 इस सन्देश को सुनो, 
तुम मूर्ख लोगों, तुम्हें समझ नहीं हैं: 
तुम लोगों की आँखें है, किन्तु तुम देखते नहीं! 
तुम लोगों के कान हैं, किन्तु तुम सनते नहीं! 
 22 निश्चय ही तुम मुझसे भयभीत हो।” 
यह सन्देश यहोवा का है। 
“मेरे सामने तुम्हें भय से काँपना चाहिये। 
मैं ही वह हूँ, जिसने समुद्र तटों को समुद्र की मर्यादा बनाई। 
मैंने बालू की ऐसी सीमा बनाई जिसे पानी तोड़ नहीं सकती। 
तरंगे तट को कुचल सकती हैं, किन्तु वे इसे नष्ट नहीं करेंगी। 
चढ़ती हुई तरंगे गरज सकती हैं, किन्तु वे तट की मर्यादा तोड़ नहीं सकती। 
 23 किन्तु यहूदा के लोग हठी हैं। 
वे हमेशा मेरे विरुद्ध जाने की योजना बनाते हैं। 
वे मुझसे मुड़े हैं और मुझसे दूर चले गए हैं। 
 24 यहूदा के लोग कभी अपने से नहीं कहते, “हमें अपने परमेश्वर यहोवा से डरना 
और उसका सम्मान करना चाहिए। 
वह हमे ठीक समय पर पतझड़ और बसन्त की वर्षा देता है। 
वे यह निश्चित करता है कि हम ठीक समय पर फसल काट सकें।” 
 25 यहूदा के लोगों, तुमने अपराध किया है। अत: वर्षा और पकी फसल नहीं आई। 
तुम्हारे पापों ने तुम्हें यहोवा की उन अच्छी चीज़ों का भोग नहीं करने दिया है। 
 26 मेरे लोगों के बीच पापी लोग हैं। 
वे पापी लोग पक्षियों को फँसाने के लिये जाल बनाने वालों के समान हैं। 
वे लोग अपना जाल बिछाते हैं, किन्तु वे पक्षी के बदले मनुष्यों को फँसाते हैं। 
 27 इन व्यक्तियों के घर झूठ से वैसे भरे होते हैं, जैसे चिड़ियों से भरे पिंजरे हों। 
उनके झूठ ने उन्हें धनी और शक्तिशाली बनाया है। 
 28 जिन पापों को उन्होंने किया है उन्ही से वे बड़े और मोटे हुए हैं। 
जिन बुरे कामों को वे करते हैं उनका कोई अन्त नहीं। 
वे अनाथ बच्चों के मामले के पक्ष में बहस नहीं करेंगे, वे अनाथों की सहायता नहीं करेंगे। 
वे गरीब लोगों को उचित न्याय नहीं पानें देंगे। 
 29 क्या मुझे इन कामों के करने के कारण यहूदा को दण्ड देना चाहिये?” 
यह सन्देश यहोवा का है। 
“तुम जानते हो कि मुझे ऐसे राष्ट्र को दण्ड देना चाहिये। 
मुझे उन्हें वह दण्ड देना चाहिए जो उन्हें मिलना चाहिए। 
 30 यहोवा कहता है, “यहूदा देश में एक भयानक और दिल दहलाने वाली घटना घट रही है। 
जो हुआ है वह यह है कि: 
 31 नबी झूठ बोलते हैं, 
याजक अपने हाथ में शक्ति लेते हैं। 
मेरे लोग इसी तरह खुश हैं। 
किन्तु लोगों, तुम क्या करोगे 
जब दण्ड दिया जायेगा