उद्धार के विषय में प्रश्न

उद्धार के विषय में प्रश्न

मोक्ष की योजना क्या है?

क्या उद्धार केवल विश्वास के द्वारा है, या विश्वास के साथ कर्मों के द्वारा?

क्या शाश्वत सुरक्षा बाइबल है?

एक बार उद्धार सदा के लिये उद्धार?

मैं अपने उद्धार का आश्वासन कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?

उन लोगों का क्या होता है जिन्हें यीशु के बारे में जानने का मौका ही नहीं मिला है? क्या परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नाश करेगें जिसने उसके बारे में कभी नहीं सुना हो?

यीशु के हमारे पापों के लिए मरने से पहले लोग उद्धार प्राप्त करते थे?

प्रतिस्थापनता वाला प्रायश्चित क्या है?

परमेश्वर की प्रभुसत्ता और मनुष्यजाति की स्वेच्छा मिलकर उद्धार में कैसे कार्य करेगी?

क्या अनन्त सुरक्षा से पाप करने का अधिकार मिल जाता है?



उद्धार के विषय में प्रश्न    
 

मोक्ष की योजना क्या है?


प्रश्न: मोक्ष की योजना क्या है?

उत्तर:
क्या आप भूखे हैं? शारिरिक रूप से भूखे नहीं, परन्तु आपको जीवन में किसी और वस्तु की भूख है? क्या आपमें गहराई तक कोई ऐसी वस्तु है जो कि कभी भी संतुष्ट होती प्रतीत नहीं होती? अगर ऐसा है, यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने कहा, "जीवन की रोटी मैं हूँ : जो मेरे पास आयेगा वह कभी भूखा ना होगा, और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा ना होगा" (यूहन्ना ६:३५) ।

क्या आप भ्रमित हैं ? क्या आप जीवन में कोई मार्ग या उद्देश्य नहीं ढूंढ पाये? क्या ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने बिजली गुल कर दी है तथा आप उसको जलाने के लिए बटन ढूंढ पाने में असर्मथ हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने दावा किया था, "जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में ना चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा" (यूहन्ना ८:१२) ।

क्या आप कभी ऐसा महसूस करते हैं कि आपके प्रति जीवन के द्वार बन्द हो गए हैं? क्या आपने बहुत सारे द्वार खटखटाये हैं, केवल यह जानने के लिए कि उनके पीछे केवल खालीपन तथा अर्थहीनता है? क्या आप एक पूर्णता के जीवन में प्रवेश करने की ओर देख रहे हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने द्घोषणा करी थी, "द्वार में हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा प्रवेश करेगा तो मोक्ष पायेगा, और भीतर-बहर आया-जाया करेगा, और चारा पायेगा" (यूहन्ना १०:९)

क्या अन्य लोग सदा आपको नीचा दिखाते हैं? क्या आपके संबंध उथले और खोखले हैं? क्या ऐसा प्रतीत होता है कि हर एक आपका लाभ उठाने का प्रयास कर रहा है? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने कहा था, "अच्छा चरवाहा मैं हूँ अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिए अपना प्राण देता है --- मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़े मुझे जानती है" (यूहन्ना १०:११, १४) ।

क्या आप आश्चर्य करते हैं कि इस जीवन के पश्चात क्या होता है? क्या आप उन वस्तुओं के लिए अपने जीवन को जीते हुए थक गए हैं, जो केवल सड़ती हैं या जंक़ खाती हैं? क्या आप को जीवन के अर्थ के प्रति का संदेह होता है? क्या आप मरणोपरान्त जीना चाहते हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है! यीशु ने घोषणा करी थी, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तो भी जीएगा । और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक नहीं मरेगा" (यूहन्ना ११:२५-२६) ।

मार्ग क्या है? सत्य क्या है? यीशु ने उत्तर दिया, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना १४:६) जो भूख आप महसूस करते हैं वो एक आत्मिक भूख है, तथा केवल यीशु के द्वारा ही पूरी की जा सकती है । एकमात्र यीशु ही है जो अंधेरे को समाप्त कर सकता है । यीशु एक संतुष्ट जीवन का फाटक है । यीशु एक मित्र तथा चरवाहा है जिसकी आप तलाश कर रहे थे । यीशु जीवन है-इस संसार में तथा अगले में । यीशु मोक्ष का मार्ग है !

आपकी भूख का कारण, आपको अंधेरे में खो जाने के प्रतीत होने का कारण, आपका जीवन में कोई अर्थ ना पाने का कारण, यह है कि आप परमेश्वर से पृथक हो गए हैं । बाइबल हमें बताती है कि हम सबने पाप किया है, तथा इसलिए हम परमेश्वर से पृथक हो गए हैं (सभोपदेशक ७:२०; रोमियो ३:२३) जो खालीपन आप अपने हृदय में महसूस कर रहे हैं वह परमेश्वर का आपके जीवन में नही होने का कारण है । हमारी रचना परमेश्वर के साथ संबंध रखने के लिए की गई थी । परन्तु अपने पाप के कारण, हम उस संबंध से अलग कर दिये गए । इससे भी बदतर यह है कि हमारा पाप सारी अनन्तता में, इस जीवन तथा अगले में, हमारी परमेश्वर से पृथकता का कारण बनेगा (रोमियो ६:२३; यूहन्ना ३:३६)

इस समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है? यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने हमारा पाप अपने ऊपर ले लिया (२कुरिन्थियों ५:२१) । यीशु हमारी जगह मरा (रोमियो ५:८), वो दण्ड लेते हुए जिसके उत्तराधिकारी हम हैं । तीन दिनों पश्चात, यीशु मुर्दों में से जी उठा, पाप तथा मृत्यु के ऊपर अपनी प्रभुता प्रमाणित करते हुए (रोमियो ६:४-५) । उसने ऐसा क्यों किया? यीशु ने स्वयं उसका उत्तर दिया, "इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे" (यूहन्ना १५:१३) यीशु मरा जिससे कि हम जी सकें । अगर हम यीशु में अपना विश्वास रखते हैं- उसकी मृत्यु को अपने पापों की कीमत मानकर-हमारे सारे पाप क्षमा किए तथा धो दिए जाते हैं । तब हम अपनी आत्मिक भूख की संतुष्टि पा सकेंगे । फिर से प्रकाश हो जायेगा । हम पूर्णता के जीवन में प्रवेश करेंगे । हम अपने सच्चे श्रेष्ठ मित्र तथा अच्छे चरवाहे को जानेंगे । हम यह जानेंगे कि मरने के पश्चात भी हमारे पास जीवन होगा-यीशु के साथ अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में एक पुर्नजीवित जीवन !

"क्योंकि परमेश्वर ने जगत में ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश नहीं हो, परन्तु अनन्त जीवन पायें" (यूहन्ना ३:१६) ।

क्या आपने, जो यहाँ पर पढ़ा है, उसके कारण यीशु के लिए निर्णय लिया है? अगर ऐसा है तो कृपा नीचे स्थित "मैंने आज यीशु को स्वीकार कर लिया है" वाला बटन दबाएँ ।


मोक्ष की योजना क्या है?    
 

क्या उद्धार केवल विश्वास के द्वारा है, या विश्वास के साथ कर्मों के द्वारा?


प्रश्न: क्या उद्धार केवल विश्वास के द्वारा है, या विश्वास के साथ कर्मों के द्वारा?

उत्तर:
यह शायद सारे क्रिश्चियनों धर्मतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है । यह प्रश्न उस सुधार का कारण है-प्रोटेस्टैंट कलीसिया तथा कैथोल्कि कलीसिया के मध्य विभाजन का । यह प्रश्न बाइबिली क्रिश्चियनों धर्म तथा सर्वाधिक "क्रिश्चियनों" संप्रदायों के मध्य एक महत्वपूर्ण भिन्नता है । क्या उद्धार केवल विश्वास के द्वारा है या विश्वास और कर्मों के द्वारा? क्या केवल यीशु पर विश्वास करके मुझे उद्धार प्राप्त हो जायेगा, या मुझे यीशु में विश्वास के साथ निश्चित कर्म भी करने होंगे?

केवल विश्वास या विश्वास के साथ कर्मों का प्रश्न बाइबल के कुछ ऐसे अनुच्छेदों के द्वारा कठिन बना दिया गया है जिनके साथ समझौता करना कठिन है । रोमियो ३:२८; ५:१ तथा गलतियों ३:२४ की याकूब २:२४ के साथ तुलना करें । कुछ लोग पौलुस (केवल विश्वास के द्वारा उद्धार है) तथा याकूब (उद्वार विश्वास तथा कर्मों के द्वारा है) के मध्य भिन्नता पाते हैं । वास्तव में पौलुस तथा याकूब में असहमति बिल्कुल नहीं थी । असहमति का केवल एक बिंदु विश्वास तथा कर्मों के मध्य संबंध है जिसका कुछ लोग दावा करते हैं । पौलुस दृढ़ता के साथ कहता है न्याय केवल विश्वास है (इफिसियों २:८-९) जबकि यह कहते हुए पाया जाता है कि न्याय विश्वास तथा कर्मों के द्वारा है । इस प्रत्यक्ष समस्या का समाधान इस बात पर निरीक्षण करने से होता है कि वास्तव में याकूब किस बारे में बात कर रहा है । याकूब उस धारणा का खंडन करता है कि कोई बिना अच्छे कार्य किए हुए विश्वास को प्राप्त कर सकता है (याकूब २:१७-१८) । याकूब उस तथ्य पर ज़ोर डाल रहा है कि क्राइस्ट में खरा विश्वास एक बदला हुआ जीवन तथा अच्छे कार्य उत्पन्न करेगा (याकूब २:२०-२६) । याकूब यह नहीं कह रहा है कि न्याय विश्वास तथा कर्मों के द्वारा है, परन्तु यह जब एक व्यक्ति विश्वास के द्वारा वास्तविक न्याय पा लेगा तो उसके जीवन में अच्छे कर्म होंगे । अगर एक व्यक्ति विश्वासी होने का दावा करता है, परन्तु अपने जीवन में अच्छे कर्म नहीं करता-फिर उसके पास क्राइस्ट मे खरा विश्वास नहीं होता (याकूब २:१४,१७,२०,२६) ।

पौलुस भी अपने लेखों में यही बातें कहता है । विश्वासियों के जीवन में जो अच्छा फल होना चाहिये वो गलतियों ५:२२-२३ में सूचीबद्ध है । यह बताने के तुरन्त बाद कि हम विश्वास द्वारा उद्धार पाते हैं, न कि कर्मों के द्वारा (इफिसियों २:८-९) । पौलुस हमें सचेत करता है कि हमारी रचना अच्छे कर्म को संपादित करने के लिए की गई है (इफिसियों २:१०) । एक परिवर्तित जीवन में पौलुस की अपेक्षा भी उतनी ही थी जितनी की याकूब की; "सो यदि कोई क्राइस्ट में है तो वह नई सृष्टि है : पुरानी बातें बीत गई, देखो वे सब नई हो गई। "(२ कुरिन्थियों ५:१७) ! याकूब तथा पौलुस मुक्ति पर अपनी शिक्षा पर असहमत नहीं थे । वे भिन्न दृष्टिकोणों से एक ही लक्षय की ओर पहुँचते हैं । पौलुस ने सरलता से इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय केवल विश्वास द्वारा ही है जबकि याकूब ने इस सत्य पर विशेष रूप से महत्व दिया कि क्राइस्ट में विश्वास अच्छे कर्म उत्पन्न करता है ।



क्या उद्धार केवल विश्वास के द्वारा है, या विश्वास के साथ कर्मों के द्वारा?    
 

क्या शाश्वत सुरक्षा बाइबल है?


प्रश्न: क्या शाश्वत सुरक्षा बाइबल है?

उत्तर:
जब लोग मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में जान जाते हैं, वो परमेश्वर के साथ संबंध में लाये जाते हैं जो कि उनकी शाश्वत सुरक्षा की गारंटी होती है । यहूदी २४ घोषणा करता है, "अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के सामने मगन और निर्दोष खड़ा कर सकता है ।" परमेश्वर की शक्ति विश्वासी को ठोकर खाने से बचाने में समर्थ है । वो उसके ऊपर है, हमारे ऊपर नहीं, कि वो हमको अपनी महिमा की भरपूरी के सामने खड़ा करें । हमारी शाश्वत सुरक्षा परमेश्वर द्वारा हमें बचाये रखना है, ना कि हमारा स्वयं अपना उद्धार बनाये रखना ।

प्रभु यीशु मसीह ने उद्घोषित करते हुए कहा "मैं उन्हें शाश्वत जीवन देता हू, और वे कभी विनष्ट नहीं होंगे, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन नही सकता । मेरे परमपिता, जिन्होंने उनको मुझे सौंपा था, सबसे महान है, और कोई उन्हें परमपिता के हाथ से छीन नहीं सकता" (यूहन्ना १०:२८-२९) । यीशु तथा परमपिता दोनों ने हमें कस कर अपने हाथों में पकड़ रखा है । परमपिता तथा पुत्र की मुठटी से हमें कौन अलग कर सकता है?

इफिसियों ४:३० हमें बताता है कि विश्वासियों को "मुक्ति दिवस के लिए निर्दिष्ट कर दिया गया है।" अगर अनुयायिओं के पास शाश्वत सुरक्षा नहीं होती, तो वो मुक्ति के दिन तक के लिये निर्दिष्ट नहीं होती, परन्तु केवल पाप करने, धर्म त्यागने, या अविश्वास करने के दिन तक ही होती । यूहन्ना ३:१५-१६ हमें बताता है कि जो भी यीशु मसीह में विश्वास करता है उसे "शाश्वत जीवन" दिया जायेगा । अगर किसी व्यक्ति को शाश्वत जीवन देने को कहा गया है, परन्तु फिर उससे ले लिया गया है, तो वो शुरू से ही "शाश्वत" कभी नहीं था । अगर शाश्वत सुरक्षा सत्य नहीं है, तो बाइबल में शाश्वत जीवन के वादे भूल ही होंगे ।

शाश्वत सुरक्षा के लिये सबसे शक्तिशाली दलील रोमियो ८:३८-३९ है, "क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह में है, अलग कर सकेगी ।" हमारी शाश्वत सुरक्षा उसके द्वारा उद्धार किये गए लोगों के प्रति परमेश्वर के प्रेम के ऊपर आधारित है । हमारी शाश्वत सुरक्षा को यीशु ने खरीदा है, परमेश्वर ने वादा किया है, तथा पवित्र आत्मा ने छाप लगाई है ।



क्या शाश्वत सुरक्षा बाइबल है?    
 

एक बार उद्धार सदा के लिये उद्धार?


प्रश्न: एक बार उद्धार सदा के लिये उद्धार?

उत्तर:
एक बार एक व्यक्ति उद्धार पा गया तो क्या उसको सदा के लिये उद्धार मिल गया? जब लोग मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में जान लेते हैं, वो परमेश्वर के साथ संबंध में लाये जाते हैं जो कि उनके उद्धार को अनन्तता के लिये सुरक्षित होने की गारंटी है । पवित्र शास्त्र के अनेक अनुच्छेद इस वास्तविकता की घोषणा करते हैं ।

(क) रोमियो ८:३० घोषणा करता है, "फिर जिन्हें उस ने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया उन्हें धार्मिक भी ठहराया गया है, और जिन्हें धार्मिक ठहराया गया, उन्हें महिमा भी दी गई है ।" यह पद हमें बताता है कि जिस क्षण परमेश्वर हमें चुन लेता है, वो ऐसा होता है जैसे कि स्वर्ग में उसकी उपस्थिति में हमें महिमा दी जा रही हो । ऐसी कोई कारण नहीं है जो कि एक दिन विश्वासी की महिमा होने को रोक सके, क्योंकि परमेश्वर ने पहले से ही उसे स्वर्ग में उसे ठहराया है । एक बार एक व्यक्ति को न्याय मिल गया, उसका उद्धार पक्का है-वो उतना सुरक्षित है जैसे कि पहले से ही स्वर्ग में महिमा पा चुका हो ।

(ख) पौलुस रोमियों ८:३३-३४ में दो महत्वपूर्ण प्रश्न पूछता है "परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगायेगा? परमेश्वर वह है जो उनको धार्मिक ठहराने वाला है । फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है ।" परमेश्वर के चुने हुए पर दोष कौन लगायेगा? कोई भी नहीं, क्योंकि मसीह हमारा अधिवक्ता है । हमें कौन दण्ड देगा? कोई भी नहीं, क्योंकि मसीह, वो जो हमारे लिये मरा, वो ही दण्ड देता है । हमारे पास हमारे उद्धारकर्ता के रूप में अधिवक्ता तथा न्यायी दोनों है ।

(ग) विश्वासी पुनः जन्म लेते हैं (सुधार किए हुए) जब वो विश्वास करते हैं (यूहन्ना ३:३; तीतुस ३:५) । एक मसीही को उद्धार गॅवाने के लिये, उसको सुधार ना किया हुआ होना पड़ेगा । बाइबल ऐसा कोई प्रमाण नहीं देती कि पुर्नजीवन ले जाया जा सकता है । (घ) पवित्र आत्मा सारे विश्वासियों में बसता है (यूहन्ना १४:१७; रोमियो ८:९) तथा सारे विश्वासियों को यीशु के शरीर में बर्पातस्मा देता है (१कुरिन्थियों १२:१३) । एक विश्वासी को उद्धार रहित बनना पड़ेगा, तथा यीशु के शरीर में से अलग होना पड़ेगा ।

(प) यूहन्ना ३:१५ व्याख्या करता है कि जो भी मसीह पर भरोसा करते हैं उन्हें "अनन्त जीवन मिलेगा ।" अगर आप आज मसीह में विश्वास करके अनन्त जीवन पा लेते हैं, परन्तु कल उसे गवा देते हैं, तो फिर वो कभी भी "अनन्त" नहीं था । इसलिए अगर आप अपना उद्धार गॅवा देते हैं, बाइबल में अनन्त जीवन के वादे एक भूल होगी ।

(फ) सबसे अधिक निश्चायत्मक दलील के लिये, मैं सोचता हूँ कि पवित्र शास्त्र स्वयं सबसे अच्छी तरह कहता है, "क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊँचाई, न गहराई, और न कोई सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह में है, अलग कर सकेगी" (रोमियो ८:३८-३९) । स्मरण रखें वो ही परमेश्वर जिसने आप का उद्धार किया था वो ही परमेश्वर है जो आपको बनाए रहेगा । एक बार हमें उद्धार प्राप्त हो गया तो सदा के लिए हो जाता है । हमारा उद्धार सर्वाधिक निश्चित अनन्तकाल के लिए सुरक्षित है!



एक बार उद्धार सदा के लिये उद्धार?    
 

मैं अपने उद्धार का आश्वासन कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?


प्रश्न: मैं अपने उद्धार का आश्वासन कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?

उत्तर:
आप कैसे जान सकते हैं कि आप बच गए हैं ? यूहन्ना 5:11-15 पर ध्यान किजिए: ‘‘और वह गवाही यह है कि परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है,और वह जीवन उसके पुत्र में है जिसके पास पुत्र है, उसके पास जीवन है, और जिसके पास परमेश्वर का पुत्र नहीं,उसके पास जीवन भी नहीं है। मैंने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिए लिखा है कि तुम जान सको कि अनन्त जीवन तुम्हारा है’’। वह कौन है जिसके पास पुत्र है? यह वह है जिन्होंने उस पर विश्वास किया और उसे ग्रहण किया (यूहन्ना 1:12) यदि यीशु आपके पास है, आपके पास जीवन है। अल्पकालिक नहीं, परन्तु अनन्त जीवन है।

परमेश्वर चाहते है कि हमें अपने उद्धार का निश्चय हो। हम अपना मसीह जीवन प्रत्येक दिन यह सोचते और चिन्ता करते नहीं जी सकते कि क्या हम वास्तव में बच गए है या नहीं। इसलिए बाईबल उद्धार की योजना को इतना स्पष्ट बनाती है। यीशु मसीह पर विश्वास करो और तुम बच जाओगे (यूहन्ना 3:16, प्रेरितों के काम 16:31) क्या आप विश्वास करते हैं कि यीशु उद्धारकर्ता है, कि वह हमारे पापों का दण्ड उठाने के लिए मरा (रोमियो 5:8:, 2 कुरिन्थियों 5:21)? क्या आप केवल उस पर अपने उद्धार के लिए भरोसा कर रहे हैं? यदि आपका उत्तर हाँ है,तो आप बच गए है। आश्वासन का अर्थ ‘‘सारी शंकाओं से परे कर देना’’ होता है। परमेश्वर का वचन अपने हृदय में लेकर, आप अपने अनन्त उद्धार के तथ्य की सच्चाई को सारी शंकाओं से परे कर सकते है।

यीशु ने स्वयं इस बात को उनके विषय में दृढ़ किया जिन्होंने उस पर विश्वास किया: :‘‘और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट ना होगें, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा । मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है,सब से बड़ा है और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता’’ (यूहन्ना10:28-29) अनन्त जीवन ऐसा अनन्त है। कोई भी ऐसा नहीं है और न आप स्वयं जो मसीह के द्वारा परेम्श्वर के दिए उद्वार का उपहार आप से छीन सकता है।

हम परमेश्वर के वचन को हृदय में रख छोड़ते है जिससे कि हम उसके विरूद्ध पाप न करे। (भजन संहिता 119:11) और यहां पर सन्देहं करने का पाप भी सम्मिलित है। इस में आनंदित हो कि परमेश्वर का वचन आप से क्या कह रहा है, कि सन्देह करने के बजाए हम दृढ भरोसे के साथ जीवन जी सकते है। हम मसीह के अपने वचनों से आश्वासन ले सकते है कि हमारे उद्धार पर कभी प्रश्न चिन्ह नहीं लगेगा । हमारा भरोसा यीशु मसीह के द्वारा हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम पर आधारित है।



मैं अपने उद्धार का आश्वासन कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?    
 

उन लोगों का क्या होता है जिन्हें यीशु के बारे में जानने का मौका ही नहीं मिला है? क्या परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नाश करेगें जिसने उसके बारे में कभी नहीं सुना हो?


प्रश्न: उन लोगों का क्या होता है जिन्हें यीशु के बारे में जानने का मौका ही नहीं मिला है? क्या परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नाश करेगें जिसने उसके बारे में कभी नहीं सुना हो?

उत्तर:
सब लोग परमेश्वर को उत्तरदायी है। यद्यपि उन्होंने ‘‘उसके बारे में सुना हो’’ या नहीं। बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर ने अपने आपको प्रकृति में (रोमियो 1:20) और लोगों के हृदय में (सभोउपदेशक 3:11) स्पष्टता से प्रकट किया है। समस्या यह है कि मानव जाति पापमय है, हम सब परमेश्वर के इस ज्ञान का इन्कार करते है और उसके विरूद्ध विद्रोह करते है (रोमियो 1:21-23)। यदि परमेश्वर का अनुग्रह ना होता, तो हम को हमारी हृदय की पापमय लालसाओं के साथ छोड़ दिया गया होता, यह जानने के लिए कि उसके बिना जीवन कितना निर्थक और दुखदायक है । वह ऐसा उनके साथ करता है जो उसका निरन्तर इन्कार करते है (रोमियो 1:24-32)।

वास्तव में, ऐसा नहीं कि कुछ लोगों ने परमेश्वर के बारे में नहीं सुना किन्तु यह समस्या है कि उन्होंने जो सुना और जो प्रकृति में सरलता से स्पष्ट से दिखाई देता है उस पर विश्वास नहीं किया। व्यवस्थाविवरण 4:29 घोषित करता है, ‘‘परन्तु वहां भी यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा को ढूँढोगें, तो वह तुम को मिल जाएगा, शर्त यह है कि तुम अपने पुरे मन से और अपने सारे प्राण से ढूंढों।’’ यह वचन एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त को सिखाता है कि जो भी परमेश्वर को सच्चाई में ढूँढतें है उसको पांएगे। यदि कोई व्यक्ति सच्चाई में परमेश्वर को जानने की इच्छा रखता है, तो परमेश्वर अपने आपको प्रगट करते है।

समस्या यह है ‘‘कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं’’ (रोमियो 3:11) लोग परमेश्वर के ज्ञान का इन्कार करते है जो प्रकृति में ओर उनके हृदय में उपस्थित है, और इसके बजाए अपने ही कल्पना से गढ़े ईश्वर की उपासना करने का निर्णय करते है। इसलिए जिसको कभी सुसमाचार सुनने का मौका नहीं मिला उसको परमेश्वर द्वारा नरक में डालने के न्याय के बारे में विवाद करना मुर्खता है। जो परमेश्वर ने लोगों पर पहले से प्रगट किया हुआ है उसके लिए वह परमेश्वर के सम्मुख उत्तरदायी है। बाइबल कहती है कि लोग इस ज्ञान का इन्कार करते है और इसलिए परमेश्वर का उनको नरक का दण्ड दिए जाना सही है।

उनके भाग्य पर विवाद करने के जिन्होंने सुसमाचार कभी नहीं सुना उसके स्थान पर, हमें मसीही होने के कारण अपनी सबसे बेहतर कोशिश करनी चाहिए जिससे वे सुनिश्चित रूप से सुसमाचार सुनने पाये । हम सारी जातियों में सुसमाचार प्रचार करने के लिए बुलाया गया है (मत्ति 28:19-20, प्रेरितों के काम 1:8)। हम जानते है लोग प्रकृति में परमेश्वर के प्रकट किये गए ज्ञान का इन्कार करते है, और इसे हमें यीशु मसीह के द्वारा उद्धार के सुसमाचार के प्रचार करने हेतू उत्साहित करना चाहिए । केवल प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का अनुग्रह ग्रहण कर के लोग अपने पापों से बच सकते है और परमेश्वर से अनन्तकाल के लिए अलग किये जाने से बचाए जा सकते है।

यदि हम यह मानकर चले कि जिन्होंने सुसमाचार कभी नहीं सुना उनको परमेश्वर की दया दे दी जाती है, तो हम भयानक समस्या में पड़ सकते है। यदि वह लोग जिन्होंने कभी सुसमाचार नहीं सुना बच जाएंगे। तो यह तर्क संगत है कि हम कोशिश करेगें कि कोई कभी सुसमाचार न सुनने पाए । सबसे बुरी बात जो हम कर सकते हैं वह यह होगी कि हम किसी व्यक्ति के साथ सुसमाचार बाँटे और ताकि वह उसका इंकार करने पाए । यदि ऐसा होगा, तो वह नाश होने के लिए ठहरा दिया जाएगा । यह आवश्यक है कि जो लोग सुसमाचार सुन नहीं पाते हैं वह नाश के लिए ठहराए हुए है नही तो सुसमाचार के लिए कोई अभिप्रेरणा नहीं होगी । यदि वे सुसमाचार न सुनने के कारण बचे हुए थे तो क्यों यह खतरा लेगें सम्भवत: वे सुसमाचार का इन्कार कर देगें और अपने आप को नाश होने के लिए ठहरा लेगें ?



उन लोगों का क्या होता है जिन्हें यीशु के बारे में जानने का मौका ही नहीं मिला है? क्या परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नाश करेगें जिसने उसके बारे में कभी नहीं सुना हो?    
 

यीशु के हमारे पापों के लिए मरने से पहले लोग उद्धार प्राप्त करते थे?


प्रश्न: यीशु के हमारे पापों के लिए मरने से पहले लोग उद्धार प्राप्त करते थे?

उत्तर:
मनुष्य के पतन से, उद्धार का आधार हमेशा यीशु की मृत्यु रही है। ना तो क्रूस से पहले या न ही क्रूस से लेकर, कोई भी कभी भी दुनियां के इतिहास में उस अति महत्वपूर्ण घटना के बिना उद्धार नही प्राप्त कर सकता है। यीशु की मृत्यु ने पुराने नियम के सन्तों के पूर्व के पापों और नया नियम के सन्तों के भविष्य के पापों के दंड की कीमत चुका दी ।

उद्धार के लिए हमेशा विश्वास ही आवश्यक रहा है। परमेश्वर ही हमेशा उद्धार के लिए विश्वास का विषय रहे है। भजनकार लिखते हैं, ‘‘धन्य हैं वे जिनका भरोसा उस पर है’’ (भजनसंहिता 2:12) उत्पत्ति 15:6 हमें बताता है कि इब्राहिम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और वह परमेश्वर के लिए बहुत था कि उसके लेखे में इसे धर्मीकता ठहराए (रोमियो 4:3-8)। पुराने नियम की बलिदान की व्यवस्था पाप को नहीं दूर कर सकती थी, जैसा कि इब्रानियों 10:1-10 स्पष्टता से सिखाता है। यह, हालांकि, उस दिन की ओर संकेत करती है जब परमेश्वर का पुत्र पापमय मनुष्य जाति के लिए अपना लहू बहाएगा ।

जो युगों में बदला है विश्वासी के विश्वास की अंतर्वस्तु विषय है । परमेश्वर की मांग को पूरा करने के लिए क्या आवश्यक है प्रकटीकरण की मात्रा पर आधारित है जो उसने मनुष्यजाति पर उस समय तक प्रकट किया है। यह क्रामिक प्रकटीकरण कहलाता है। आदम ने उत्पत्ति 3:15 परमेश्वर द्वारा दी गई प्रतिज्ञा पर विश्वास किया कि स्त्री का वंश शैतान पर विजय प्राप्त करेगा । आदम ने उस पर विश्वास किया, यह जो नाम उसने हवा को दिया उससे प्रदर्शित हुआ (वचन-20) और प्रभु ने तुरन्त अपनी स्वीकृति का संकेत दिया उन्हें चमड़े के अंगरखो से ढांप कर (वचन 21) उस समय तक आदम यही सब जानता था, परन्तु उसने उस पर विश्वास किया ।

इब्राहिम ने परमेश्वर पर उन वायदों और नये प्रकटीकरण के अनुसार जो परमेश्वर ने उत्पत्ति 12 और 15 में उसे दिये थे विश्वास किया । कोई धर्मशास्त्र मुसा से पहले नहीं लिखा हुआ था, परन्तु मनुष्य जाति उस सबके लिए उत्तरदायी थी जो परमेश्वर ने सारे पुराने नियम में प्रकट किया था। पुराने नियम में विश्वासियों ने उद्धार पाया क्योंकि उन्होंने विश्वास किया कि परमेश्वर किसी समय उनके पाप की समस्या का समाधान करेगें। आज, जब हम पीछे देखते हैं, विश्वास करते हुए कि उसने पहले से ही क्रूस पर हमारे पापों का समाधान कर दिया (यूहन्ना 3:16, इब्रानियों 9:28) ।

क्रूस और पुनरूत्थान से पहले, मसीह के समय के विश्वासियों का उद्धार कैसे हुआ? वह क्या विश्वास करते थे ? क्या वह मसीह के उनके पापों के लिए क्रूस पर मरने के पूर्ण चित्र को समझते थे ? अपनी सेवकाई में बाद में, यीशु अपने शिष्यों को बताने लगा, ‘‘अवश्य है कि मैं यरूशलेम को जाऊँ और पुरनियों,और प्रधान याजकों, और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुख उठाऊँ, और मार डाला जाऊँ, और तीसरे दिन जी उठूँ’’ (मत्ती 16:21-22)। इस सन्देश पर शिष्यों की क्या प्रतिक्रिया थी ? ‘‘इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर झिडकने लगा, ‘‘है प्रभु, परमेश्वर न करे ! तेरे साथ ऐसा कभी न होगा । पतरस और दुसरे शिष्य पूर्ण सच्चाई को नहीं जानते थे, फिर भी वह बच गए क्योंकि वह विश्वास करते थे कि परमेश्वर उनके पाप की समस्या का समाधान कर लेगें। वह पूर्णतया नहीं जानते थे कि वह ऐसा कैसे करेगा उससे कुछ भी अधिक जितना आदम, इब्राहिम, मुसा या दाऊद जानते थे, पर उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया ।

आज, हमारे पास मसीह के पुनरूत्थान से पहले रहने वाले लोगों से अधिक ईश्वर का प्रकाश है, हम सम्पूर्ण चित्र को जानते है । ‘‘पूर्व युग में परमेश्वर ने बाप-दादों से थोड़ा-थोड़ा करके और भांति-भांति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बाते कर, इन अन्तिम दिनों में हम से पुत्र के द्वारा बाते की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया, और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि की रचना की है’’ (इब्रानियों 1:1-2)। हमारा उद्धार अभी भी मसीह की मृत्यु पर आधारित है, हमारा विश्वास अभी भी उद्धार के लिए आवश्यक है, और हमारे विश्वास का पात्र अभी भी परमेश्वर है। आज, हमारे लिए हमारे विश्वास की बात यह है कि यीशु मसीह हमारे पापों के लिए मर गया, गाड़ा गया, और तीसरे दिन जी भी उठा (कुरिन्थियों 15:3-4) ।



यीशु के हमारे पापों के लिए मरने से पहले लोग उद्धार प्राप्त करते थे?    
 

प्रतिस्थापनता वाला प्रायश्चित क्या है?


प्रश्न: प्रतिस्थापनता वाला प्रायश्चित क्या है?

उत्तर:
प्रतिस्थापनता (किसी के बदले में या स्थान पर) वाला प्रायश्चित यीशु मसीह का पापीयों के स्थान पर मरने से सम्बन्धित है। धर्म शास्त्र सिखाता है कि सब मनुष्य पापी है (रोमियो 3:9-18, 23) । हमारी पापमयता की सजा मृत्यु है। रोमियो 6:23 में लिखा है, ‘‘क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।

यह वचन हमें कई बाते सिखाता है। मसीह के बिना, हम मर जाएंगे और अपने पापों की कीमत चुकाने के लिए नरक में अनन्तकाल बिताएंगे । धर्मशास्त्र में मृत्यु का अर्थ ‘‘अलग किया जाना है’’ । सभी मरेगें, परन्तु कुछ प्रभु के साथ के स्वर्ग में अनन्तकाल के लिए रहेंगे, जबकि दूसरे अनन्तकाल के लिए नरक में जीवन बिताएंगे। मृत्यु जिसकी बात यहीं पर की गई है कि अर्थ नरक में जीवन है। हालांकि, इस वचन में दूसरी बात हमें सिखाती है कि यीशु मसीह के द्वारा अनन्त जीवन उपलब्ध है। यह उसका प्रतिस्थापन प्रायश्चित है। (हमारे लिए उसकी मृत्यु है)

जब उसको क्रूस पर चढ़या गया तब यीशु मसीह हमारे स्थान पर मरा । हम उस क्रूस पर मरने के लिए चढ़ाए जाने के योग्य थे क्योंकि हम है जो पापमय जीवन व्यतीत करते है परन्तु मसीह ने हमारे स्थान पर दण्ड को अपने ऊपर ले लिया - वह हमारे लिए स्थानापन व्यक्ति बना और वह सब उठाया जिसके हम वास्तव में योग्य थे । ‘‘जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं (2 कुरिन्थियों 5:21) ।

‘‘वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया, जिससे हम पापों के लिए मरकर धर्मिकता के लिए जीवन बिताएं’’ (1 पतरस 2:24)। फिर हम यहां देखते हैं कि मसीह ने जो पाप हमने किए उनको अपने ऊपर उठा लिया ताकि हमारे लिए उनकी कीमत चुकाए। कुछ वचन बाद हम पढ़ते है, ‘‘इसलिए कि मसीह ने भी, अर्थात अधर्मियों के लिए धर्मी ने, पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए, वह शरीर के भाव से तो धात किया गया, पर आत्मा के भाव से जिलाया गया । (1 पतरस 3:18)। ये वचन हमें केवल यही नहीं सिखाते कि मसीह ने हमारा स्थान लिया परन्तु ये यह भी सिखाते है कि वह हमारा प्रायश्चित था, अर्थात उसने मनुष्य की पापमयता के दाम को चुकाया एवं सन्तुष्ट किया । एक और भाग जो प्रतिस्थापन प्रायश्चित के बारे में बात करता है वह यशायाह 53:5 है । यह वचन मसीह के आने की बात करता है जिसको हमारे पापों के लिए क्रूस पर मरना था। यह भविष्यवाणी बहुत विस्तृत है, और क्रूस पर चढाए जाना बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे पहले कहा गया था।’’ परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया, हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताडना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगें हो जाएँ’’ । प्रतिस्थापन को देखिए । यहां फिर हम देखते हैं कि मसीह ने हमारे लिए कीमत चुकाई ।

हम अपने पाप की सजा और कीमत केवल सम्पूर्ण अनन्तकाल के लिए नरक डाल दिए जाने के द्वारा ही उठाकर अदा कर सकते है। परन्तु परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह हमारे पापों की कीमत अदा करने के लिए पृथ्वी पर आया। क्योंकि उसने हमारे लिए यह सब किया, इसलिए अब हमारे पास न सिर्फ अपने पाप क्षमा करवाने का, परन्तु उसके साथ अनन्तकाल का समय बिताने का भी अवसर है । हमारे लिए ऐसा हो उसके लिए जो मसीह ने क्रूस पर किया उस पर अपना विश्वास करने की आवश्यकता है है। हम अपने आप को बचा नहीं सकते, हमें किसी की आवश्यकता है जो हमारा स्थान ले ले। यीशु मसीह की मृत्यु ही प्रतिस्थापनता वाला प्रायश्चित है।



प्रतिस्थापनता वाला प्रायश्चित क्या है?    
 

परमेश्वर की प्रभुसत्ता और मनुष्यजाति की स्वेच्छा मिलकर उद्धार में कैसे कार्य करेगी?


प्रश्न: परमेश्वर की प्रभुसत्ता और मनुष्यजाति की स्वेच्छा मिलकर उद्धार में कैसे कार्य करेगी?

उत्तर:
परमेश्वर की प्रभुसत्ता और मानवजाति की स्वेच्छा और दायित्व के मध्य जो सम्बन्ध है उसको पूरी रीति से समझना असम्भव है । केवल परमेश्वर ही सच्चाई जानते हैं कि यह कैसे उनकी उद्धार की योजना में एक साथ कार्य करते हैं । शायद इसलिए ऐसा और अधिक इस मुद्दे पर किसी अन्य शिक्षा के साथ यह अत्य आवश्यक रूप से महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर की प्रकृति और हमारा उसके साथ सम्बन्ध को पूर्णतया समझने के हमारी अयोग्यता को मान ले । दोनों में से किसी भी तरफ बहुत अधिक जाने का परिणाम उद्धार की विकृत समझ होती है ।

धर्मशास्त्र स्पष्ट है कि परमेश्वर जानते हैं कौन बचेंगे (रोमियों 8:29, 1 पतरस 1:2)। इफिसियों 1:4 बताता है कि परमेश्वर ने हमें ‘‘जगत की उत्पति से पहले चुन लिया’’। बाईबल बार-बार विश्वासी को ‘‘चुना हुआ’’ (रोमियों 8:33, 11:5, इफिसियों 1:11, कुलुस्सियों 3:12, 1 थिस्सलुनीकियो 1:4, 1 पतरस 1:2, 2:9) और ‘‘ठहराए हुए’’ ब्यान करती है ( मत्ती 24:22, 31; मरकुस 13:20,27; रामियो 11:7; 1 तीमुथियुस 5:21, 2 तीमुथियुस 2:10; तीतुस 1:1; 1 पतरस 1:1) यह तथ्य कि विश्वासी पहले से उद्धार के लिए ठहराए हुए, (रोमियो 8:29-30; इफिसियो 1:5,11) और चुने हुए है (रोमियो 9:11; 11:29; 2 पतरस 1:10) यह सहज स्पष्ट है।

बाइबल यह भी कहती है कि हम मसीह को उद्धारकत्र्ता ग्रहण करने के लिए जिम्मेदार है- हमे बस यह करना है कि यीशु मसीह पर विश्वास करें और हम बच ‌‌‌जाऐंगें (यूहत्रा 3:16; रामियो 10:9-10) । परमेश्वर जानते है कि कौन बचेंगे, परमेश्वर चुनते हैं उन्हें जो बचेंगे और हम भी मसीह को अवश्य चुने जिससे कि हम बच जाए। सीमित दिमाग के लिए यह समझना असमभव है कि यह तीनों तथ्य कैसे मिलकर कार्य करते हैं (रोमियो 11:33-36)। सुसमाचार को सारे संसार में ले जाना हमारी जिम्मेदारी है (मत्ती 28:18-20; प्रेरितो के काम 1:8)। हमे़ं पूर्वज्ञान, चुनाव, और पहले से ठहराए जाने वाले भाग को परमेश्वर पर छोड़ना है और बस सुसमाचार को फैलाने में आज्ञाकारी रहना है।



परमेश्वर की प्रभुसत्ता और मनुष्यजाति की स्वेच्छा मिलकर उद्धार में कैसे कार्य करेगी?    
 

क्या अनन्त सुरक्षा से पाप करने का अधिकार मिल जाता है?


प्रश्न: क्या अनन्त सुरक्षा से पाप करने का अधिकार मिल जाता है?

उत्तर:
अनन्त सुरक्षा की शिक्षा पर यह आपत्ति की जाती है कि यह कल्पित रूप से लोगों को जैसे वे चाहते है वैसे रहने की अनुमति देती है । जबकि यह ‘‘एक दृष्टि से ’’ सही हो सकता है, किन्तु यह वास्तव में सही नहीं है। कोई जन जिसका छुटकारा सच्चाई में यीशु मसीह के द्वारा हुआ है वह निरंतर जानबुझ कर पाप करने वाला जीवन व्यतीत नहीं करेगा। हमे इसके बीच अंतर करना चाहिए कैसे एक मसीह को जीना चाहिए और एक व्यक्ति को उद्धार प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ।

बाइबल स्पष्ट बताती है कि उद्धार केवल अनुग्रह से, केवल विश्वास के द्वारा, केवल यीशु मसीह में है (यूहत्रा 3:16;इफिसियों 2:8-9; यूहत्रा 14:6)। जिस पल कोई जन सच्चाई में यीशु मसीह पर विश्वास करता है, वह उद्धार में सुरक्षित हो जाता है और बच जाता है। उद्धार विश्वास से नहीं मिलता परन्तु कार्यो द्वारा बनाए रखा जाता है। पौलुस प्रेरित इस मुद्दे को गलातियों 3:3 में संबोधित करता है, जब वह पुछता है, ‘‘क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो कि आत्मा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे?’’ यदि हम विश्वास के द्वारा बचे है, हमारा उद्धार भी विश्वास के द्वारा सुरक्षित और बने रहता है। हम अपने उद्धार को कमा नहीं सकते हैं। इसलिए, हम अपने उद्धार को बनाए रखने को भी कमा नहीं सकते है। यह परमेश्वर है जो हमारे उद्धार को बनाए रखते हैं (याकूब 2:4)। यह परमेश्वर का हाथ है जो हमे अपनी पकड़ में रखता है (यूहत्रा 10:28-29)। यह परमेश्वर का प्रेम है जिससे हमे कोई अलग नहीं कर सकता है (रोमियो 8:38-39)।

अनन्त सुरक्षा की शिक्षा का इन्कार है, वस्तुत : यह विश्वास है कि हम अपने उद्धार को अच्छे कार्यो, और प्रयासों से बनाए रखे। यह पूर्णतया अनुग्रह के द्वारा उद्धार के विपरीत है। हम अपनी नही, मसीह की योग्यता के कारण बचे हैं (रोमियों 4:3-8)। यह दावा करना कि उद्धार को बनाए रखने के लिए हमे परमेश्वर के वचन को मानना है या धार्मिक जीवन जीना आवश्यक है यह कहने के बराबर है कि हमारे पापो के प्रायश्चित के लिए यीशु की मृत्य प्रार्याप्त नहीं थी। यीशु की मृत्यु हमारे पुर्व, वर्तमान और भविष्य उद्धार पाने के पूर्व और उद्धार पाने के बाद के सभी पापों के लिए पूर्ण तथा प्रर्याप्त थी (रोमियो 5:8; 1 कुरिन्थियों 15:3; 2 कुरिन्थियों 5:21) ।

क्या इसका अर्थ यह है कि कोई मसीही जैसे चाहे जी सकता है और फिर भी बच जाएगा ? यह मूलत: एक परिकल्पित प्रश्न है, क्योकि बाइबल स्पष्ट करती है कि सच्चा मसीही ‘‘जैसे भी वह चाहे’’ ऐसे नहीं जीएगा । मसीही नयी सृष्टि होते है (2 कुरिन्थियों 5:17) । मसीही आत्मा के फलों को प्रदर्शित करते है (गलातियो 5:22-23), न कि शरीर के कार्यो को (गलातियो 5:19-21) । पहला यूहन्ना 3:6-9 स्पष्टता से ब्यान करता है कि एक मसीही निरन्तर पाप में नही जीएगा । इस आरोप के उत्तर में कि अनुग्रह पाप को बढ़ावा देता है, पौलुस प्रेरित प्रकटित करता है, ‘‘तो हम क्या कहे? क्या हम पाप करते रहे कि अनुग्रह बहुत हो ? कदापि नहीं ! हम जब पाप के लिए भर गए तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताए (रोमियो 6:1-2) ।

अनन्त सुरक्षा पाप करने का अधिकार नहीं है। बल्कि, यह इसे जानने की सुरक्षा है कि जो मसीह पर विश्वास करते है उनके लिए परमेश्वर के प्रेम की प्रतिज्ञा है। परमेश्वर के महान उद्धार के उपहार को जानना और समझना पाप करने का अधिकार देने से विपरीत बात के लिए प्रेरित करता है । कोई कैसे, यीशु मसीह ने हमारे लिए जो कीमत चुकाई उसे जानते हुए, पाप का जीवन व्यतीत करता रह सकता है (रोमियो 6:15-23) ? कोई कैसे जो विश्वास करने वालों के लिए परमेश्वर के अप्रतिबंधित और गारंटित प्रेम समझता है, उस प्रेम को लेकर उसे परमेश्वर के चेहरे पर फैंक सकता है? ऐसा व्यक्ति यह नहीं प्रदर्शित करता कि अनन्त: सुरक्षा ने उसे पाप करने का अधिकार दे दिया है, बल्कि यह कि उसने यीशु मसीह द्वारा दिए गए उद्धार को सच्चाई में अनुभव नहीं किया है । ‘‘जो कोई उसमें बना रहता है, वह पाप नहीं करता: जो कोई पाप करता है, उसने न तो उसे देखा है और न उसको जाना है (1 यूहन्ना 3:6) ।



क्या अनन्त सुरक्षा से पाप करने का अधिकार मिल जाता है?